वाराहवतार - प्रभु विभिन्न अवतारों के माध्यम से, पृथ्वी पर अवतरित होते हैं और राक्षस रूपी शक्तियों का वध करते हैं। ठीक उसी प्रकार, हम अपने अंदर भी तप-सेवा-सुमिरन की साधना से, प्रभु की शक्तियों को जगा कर, अपने अंदर स्थित काम-क्रोध-मोह रूपी राक्षसों का नाश कर सकते हैं।
कूर्म अवतार को 'कच्छप अवतार' (कछुआ के रूप में अवतार) भी कहते हैं। कूर्म के अवतार में भगवान विष्णु ने क्षीरसागर के समुद्रमंथन के समय मंदार पर्वत को अपने कवच पर संभाला था। इस प्रकार भगवान विष्णु, मंदर पर्वत और वासुकि नामक सर्प की सहायता से देवों एंव असुरों ने समुद्र मंथन करके चौदह रत्नोंकी प्राप्ति की। इस समय भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप भी धारण किया था। भगवान महादेव ने इसमें ज़हर का सेवन किया और अपने कंठ में उसे रोक कर रखा जिससे उनका नीलकंठ नाम पड़ा।
भगवान श्री विष्णु ने पृथ्वी पर अनेकों बार किसी ना किसी रूप में जन्म लिया है। इन्हीं अवतारों को कहानियों के रूप में IASS USA आपके के सम्मुख प्रस्तुत करता है। डॉ. रजेश्वरी ने अत्यंत ही सरल भाषा में इन कहानियों को शब्दों में पिरोया है। तप सेवा सुमिरन की साधना कहीं ना कहीं हमारे इन्ही पुराणिक कहानियों और कथाओं से भी जुड़ी हुई है। यह कहानी संग्रह, उन्हीं तीन साधना पद्धतियों को, हमारे परिवार के नन्हे बालक और बालिकाओं तक पहुँचाने का एक छोटा सा प्रयास है।
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